हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ‘विवादित’ भोजशाला परिसर के सर्वे की अनुमति दी

धार

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने सोमवार को धार जिले में स्थित भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वे की अनुमति दे दी है। आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को छह सप्ताह के भीतर सर्वे करना है। हाई कोर्ट ने हिंदू ट्रस्ट की याचिका पर 19 फरवरी को सुनवाई की थी और आदेश सुरक्षित रख लिया था।

भोजशाला ASI संरक्षित एक स्मारक है, जिसे हिंदू वागदेवी (माता सरस्वती) का मंदिर बताते हैं तो मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद होने का दावा करते हैं। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने भोजशाला में नमाज पढ़े जाने के खिलाफ 2 मई 2022 को याचिका दायर की थी। वकील विष्णु शंकर जैन ने पुष्टि की कि हाई कोर्ट ने धार के भोजशाला में काशी के ज्ञानवापी की तरह सर्वे की अनुमति दी है।  

दो साल पहले हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से दायर याचिका में एएसआई से वैज्ञानिक सर्वे कराने की मांग की गई थी ताकि यह साफ हो सके कि भोजशाला असल में मंदिर है या मस्जिद। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से सबूत के तौर पर पेश किए गए रंगीन चित्रों के आधार पर सर्वे की अनुमति दी। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि खंभों पर संस्कृत में श्लोक लिखे हैं। उन्होंने कहा कि यह माता वागदेवी का मंदिर है, जिनकी मूर्ति लंदन के म्यूजियम में है।

धार भोजशाला को लेकर हिंदू पक्ष की ओर से कई अलग-अलग याचिकाएं अलग-अलग कोर्ट में लगाई जा चुकी हैं जिनके संबंध में कई आदेश भी जारी किए गए हैं। हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष से धार भोजशाला के संबंध में कोर्ट द्वारा जारी किए सभी आदेशों की जानकारी बुलाई थी। इसके बाद सोमवार को अपना फैसला सुनाया।

क्या है केस
धार भोजशाला को हिंदू पक्ष मंदिर बताता है जबकि मुस्लिम भी इस पर अपना अधिकार जताते हैं। पुरातत्व विभाग के पुराने सर्वे के आधार पर 2003 में एक आदेश जारी किया गया जिसमें शुक्रवार को यहां नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। अभी तक यह आदेश प्रभावी है।

हिंदू पक्ष ने धार भोजशाला पर अपना अधिकार जताते हुए कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की हैं। इंदौर हाईकोर्ट में ज्ञानवापी की ही तरह धार भोजशाला का भी नए सिरे से सर्वे कराने की मांग की गई।

क्या है भोजशाला का इतिहास?
हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. राजा भोज सरस्वती देवी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. इसे हिंदू सरस्वती मंदिर भी मानते थे.  ऐसा कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी. बताया जाता है कि 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है. हाईकोर्ट में याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है. 

आखिर क्या है विवाद?

हिंदू संगठन भोजशाला को राजा भोज कालीन इमारत बताते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का तर्क है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. दूसरी ओर, मुस्लिम समाज का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. मुस्लिम इसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं. यही कारण है कि आज इसके सर्वे को लेकर कोर्ट ने आदेश जारी किया है.

 

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