विश्लेषकों का कहना है कि अगर तनाव बढ़ता है तो तेल के दाम बहुत ज्यादा बढ़ जायँगे

नईदिल्ली /तेलअवीव

आधी रात उस वक्त मध्य-पूर्व का तनाव और बढ़ गया जब ईरान ने अपने धुर विरोधी दुश्मन देश इजरायल पर ताबड़तोड़ हवाई हमले शुरू कर दिए. इजरायल का कहना है कि ईरान की तरफ से 300 से अधिक ड्रोन और मिसाइलें दागी गईं जिनमें से लगभग सभी को एयर डिफेंस सिस्टम से रोक दिया गया. एक तरफ जहां इजरायल का सहयोगी अमेरिका दोनों देशों के बीच और हमले रोकने की कोशिश में है, इजरायली वॉर कैबिनेट ने अपनी जवाबी कार्रवाई के बारे में बात करते हुए कह दिया है कि कार्रवाई हमारे अपने तरीके और हमारे चुने हुए वक्त पर होगी.

दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात का वैश्विक बाजार पर भारी असर पड़ा है. भारतीय शेयर बाजार में इस तनाव के कारण सोमवार को भारी गिरावट देखी जा रही है. सोने और चांदी की कीमतों में भी भारी उछाल आया है. वहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तेल की कीमतों में भी भारी बढ़ोतरी की संभावना बनी हुई है.

तेल की कीमतों में उछाल दो हफ्ते पहले ही शुरू हो गई थीं जब इजरायल ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हमला कर दिया था. 1 अप्रैल को हुए हमले में ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर के सीनियर कमांडर और उनके दो सहयोगी मारे गए. इसके बाद से ही इजरायल पर ईरान के हमले की आशंका जताई जा रही थी जिसे देखते हुए तेल की कीमतें बढ़ गईं.

12 अप्रैल को ईरान के हमले से पहले तेल की कीमतों में 1% का उछाल आया और कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड 90.45 बैरल प्रति डॉलर पर पहुंच गया. यह उछाल इसलिए आया क्योंकि तेल बाजार में इस बात की आशंका जताई जाने लगी कि दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात के कारण आपूर्ति में बाधा आ सकती है. हालांकि, ईरान के हमले के बाद तेल की कीमतों में थोड़ी गिरावट देखी जा रही है.

130 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं तेल की कीमतें

7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर हमले के बाद गाजा में इजरायली हमला शुरू हुआ था और इस बीच लगातार यह डर बना हुआ था कि युद्ध का स्तर बढ़ सकता है, इजरायल और ईरान के बीच युद्ध छिड़ सकता है.

इजरायल-ईरान के बीच युद्ध की संभावना को देखते हुए कच्चे तेल की कीमतें 6 महीने के अपने उच्चतम स्तर पर हैं. इसी बीच तेल उत्पादक देशों ओपेक ने भी हाल ही में 22 लाख बैरल प्रतिदिन की तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा कर दी है ताकि तेल बाजार में स्थिरता आए.

विश्लेषकों का मानना है कि अगर ईरान के हमले के बाद इजरायल जवाबी कार्रवाई में ईरान पर हमला करता है तो ब्रेंट क्रूड की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक बढ़ सकती हैं.

ईरान दुनिया का सातवां सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है और वो ओपक में तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादनकर्ता है.

अमेरिकी बिजनेस न्यूज वेबसाइट सीएनबीसी से बात करते हुए रैपिडन एनर्जी के अध्यक्ष और एक पूर्व वरिष्ठ ऊर्जा अधिकारी बॉब मैकनेली ने बताया कि अगर इजरायल-ईरान के बीच तनाव बढ़ने से तेल के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग, स्ट्रेट ऑफ होर्मुज में दिक्कतें पैदा होती हैं तो कच्चे तेल की कीमतें 120 डॉलर या 130 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं.

ओमान और ईरान के बीच स्थित स्ट्रेट ऑफ होर्मुज से दुनिया के कुल तेल आपूर्ति का 20% तेल गुजरता है. ओपेक के सदस्य सऊदी अरब, ईरान, यूएई, कुवैत और इराक अपना सबसे अधिक तेल स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के जरिए ही भेजते हैं.

शनिवार को ईरान ने यहां से गुजर रहे इजरायल से जुड़े एक व्यापारिक जहाज को जब्त कर लिया था.

इजरायल-ईरान तनाव का भारत पर असर

भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, इसलिए कीमतों में कोई भी बढ़ोतरी सीधे तौर पर देश के राजकोषीय घाटे और मुद्रास्फीति को बढ़ाती है.

अगर तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो इससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) पर असर पड़ेगा और यह बढ़ जाएगा. यह तब बढ़ता है जब आयात की जाने वाली वस्तुओं की कीमत निर्यात की गई वस्तुओं की कीमत से अधिक हो जाती है.

विश्लेषकों के अनुसार, कच्चे तेल में अगर  10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी होती है तो चालू खाता घाटा में 40-50 आधार अंकों की बढ़ोतरी हो सकती है.

अगर किसी देश का चालू खाता घाटा ज्यादा है तो निवेशकों का विश्वास वहां से कम होता है और देश की मुद्रा कमजोर हो सकती है जिस कारण आयात महंगा हो जाता है. जब विदेशों से महंगी वस्तुएं देश में आएंगी तो महंगाई बढ़ना तय है जो लोगों की खरीदने की क्षमता को कम करता है.

इसका अर्थ यह हुआ कि अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो भारत पर महंगाई की मार पड़नी तय है.

 

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