इन चीजों के तर्पण से दर्श अमावस्या पर पितृ होंगे प्रसन्न

हिन्दू धर्म में दर्श अमावस्या बड़े ही उत्साह से मनाई जाती है. दर्श अमावस्या के दिन स्नान-दान से पुण्य मिलता है. दर्श अमावस्या का दिन पितरों के लिए भी बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितर धरती लोक पर आते हैं. दर्श अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है. दर्श अमावस्या पर किए तर्पण और पिंडदान से पितर प्रसन्न होते हैं. इस दिन पितरों के तर्पण और पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि मार्च 28 को शाम 07 बजकर 55 मिनट पर प्रारम्भ होगी और इसका समापन 29 मार्च को शाम 04 बजकर 27 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में दर्श अमावस्या 29 मार्च को ही मनाई जाएगी.
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी दर्श अमावस्या पर अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करता है उसके तीन पीढ़ियों के पीतरों को मोक्ष प्राप्त होता है. दर्श अमावस्या के दिन तर्पण और पिंडदान से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है. साथ ही पृत दोष से मुक्ति मिल जाती है. दर्श अमावस्या पर पितरों का तर्पण कैसे करना चाहिए. तर्पण के समय कौनसी चीजें उपयोग करना चाहिए. आइए विस्तार से जानते हैं.
तर्पण विधि
दर्श अमावस्या पर प्रात: काल में किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. इसके बाद तर्पण के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर लेना चाहिए. पितरों का तर्पण करने के लिए जौ, कुश, गुड, घी, अक्षत और काले तिल का का उपयोग करना चाहिए. पितरों का तर्पण करते समय उनका ध्यान करना चाहिए. जल लेकर पितरों का तर्पण करना चाहिए. पितरों के तर्पण के बाद पशु-पक्षियों को खाना खिलाना चाहिए. साथ ही दान भी अवश्य करना चाहिए.
इन चीजों के उपयोग से पितर हो जाते हैं तृप्त
स्कंद पुराण के अनुसार, दर्श अमावस्या के दिन पितरों की मुक्ति और उन्हें प्रसन्न करने के लिए जौ, कुश, गुड, घी, अक्षत और काले तिल के साथ-साथ मधु युक्त खीर गंगा में डालनी चाहिए. ऐसा करने पितर 100 सालों तक के लिए तृप्त हो जाते हैं. साथ ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
पिंडदान विधि
• सबसे पहले पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. • इसके बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. • फिर चौकी पर पितरों की तस्वीर रखनी चाहिए. • गाय का गोबर, आटा, तिल और जौ से पिंड बनाना चाहिए. • पिंड बनाकर उसे पितरों को अर्पित करना चाहिए. • पितरों का ध्यान और पितृ दोष शांति के मंत्रों का जाप करना चाहिए.