आबकारी मामला: ईडी के समन के खिलाफ केजरीवाल की याचिका को अदालत ने 11 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया
आबकारी मामला: ईडी के समन के खिलाफ केजरीवाल की याचिका को अदालत ने 11 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया
इटावा संसदीय सीट पर भाजपा की हैट्रिक में ब्रेक के आसार
पीओके भारत का हिस्सा है, हम इसे लेकर रहेंगे: अमित शाह
नई दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन मामले में जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी समन को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका को बुधवार को 11 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने आम आदमी पार्टी (आप) के नेता को ईडी के उत्तर पर प्रत्युत्तर देने के लिए चार और सप्ताह का समय दिया। केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए उच्चतम न्यायालय ने एक जून तक अंतरिम जमानत दी है।
ईडी के वकील ने पहले कहा था कि केजरीवाल को अंतरिम संरक्षण नहीं प्रदान करने के उच्च न्यायालय के आदेश के पश्चात धनशोधन मामले में 21 मार्च को एजेंसी द्वारा उनकी गिरफ्तारी के बाद समन के खिलाफ याचिका बेकार हो जाती है।
ईडी के वकील ने बुधवार को कहा कि याचिकाकर्ता को वह मंच चुनना चाहिए जहां वह अपने मुद्दे उठाएंगे।
अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने ‘आप’ नेता की गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका खारिज करते हुए पहले ही उनकी शिकायतों को देखा है और फैसले के खिलाफ अपील शीर्ष अदालत में लंबित है। पीठ में न्यायमूर्ति मनोज जैन भी शामिल थे।
हालांकि, केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम चौधरी ने कहा कि धनशोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के प्रावधानों को पढ़ने के संदर्भ में याचिका में उठाए गए प्रश्नों पर एकल न्यायाधीश ने फैसला नहीं किया है। उन्होंने अदालत से प्रत्युत्तर (रिजॉइन्डर) के लिए और समय मांगा।
इससे पहले अदालत ने 22 अप्रैल को केजरीवाल को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था।
आप के राष्ट्रीय संयोजक ने उन्हें ईडी द्वारा नौवां समन जारी किये जाने के मद्देनजर उच्च न्यायालय का रुख किया था। उस समन में, उनसे 21 मार्च को ईडी के समक्ष पेश होने को कहा गया था। उसी दिन शाम में उन्हें ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था। वह अभी तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं।
संघीय एजेंसी का आरोप है कि मामले में अन्य आरोपी आबकारी नीति तैयार करने के लिए केजरीवाल के संपर्क में थे जिसे अब रद्द किया जा चुका है। यह भी आरोप है कि इस नीति के परिणामस्वरूप आरोपियों को फायदा हुआ और इसके बदले में उन्होंने आम आदमी पार्टी को रिश्वत दी थी।
इटावा संसदीय सीट पर भाजपा की हैट्रिक में ब्रेक के आसार
इटावा
यादवलैंड के आधार स्तंभ कहे जाने वाली उत्तर प्रदेश की इटावा संसदीय सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हैट्रिक के ब्रेक होने के आसार नजर आ रहे है।
भाजपा की हैट्रिक में ब्रेक के आसार ऐसे ही नजर नहीं आ रहे हैं इसके पीछे भी कई अहम तथ्य बताए जा रहे हैं। संविधान बदलने की वकालत करने वाली भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ दलित, पिछड़ी और मुस्लिम जाति से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं ने खास मोर्चा खोला हुआ है। इन वर्गों के मतदाता सत्ता का मिजाज बदलने की कवायत करते हुए देखे गए है।
सोमवार को हुए मतदान के बाद राजनीतिक विश्लेषकों के बीच इस बात की चर्चाएं आम हो चुकी है कि इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार जितेंद्र दोहरे और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रो. रामशंकर कठेरिया के बीच जोरदार संघर्ष नजर आ रहा है। इस जोरदार संघर्ष के बीच कोई भी दल अपने आप को स्पष्ट तौर पर जीतता हुआ नहीं बता पा रहा है हालांकि भारतीय जनता पार्टी चुनाव प्रबंधन से जुड़े हुए प्रभावी लोग ऐसा जरूर मानते हैं कि 2019 के मुकाबले दलित और पिछड़ी से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं ने पोलिंग बूथ पर पहुंच कर वोट किया है,उनका वोट किसके पक्ष में गया है यह अभी बताना कठिन है।
कई जानकारों के अनुसार मतदान के दिन दलित और पिछड़ी जाति के वर्ग का वोटिंग का रुख सत्ता के खिलाफ महसूस हुआ है, अगर वाकई में ऐसा हुआ तो इटावा सीट पर बड़ा उलटफेर हो सकता है।
राजनीतिक टीकाकार और वरिष्ठ पत्रकार गुलशन कुमार बताते है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रोफेसर रामशंकर कठेरिया और इंडिया गठबंधन के जितेंद्र दोहरे में सीधा मुकाबला देखा जा रहा है। बसपा के मुख्य लड़ाई में न होने की वजह से उसका वोट इंडिया गठबंधन के साथ जाता हुआ नजर आया है। इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार दोहरे समाज के होने के वजह से इसका फायदा इंडिया गठबंधन को मिला तो चुनाव इंडिया गठबंधन के पक्ष में जा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक यह भी बताते हैं कि साल 2019 के चुनाव में दलित और पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले बड़ी तादात में मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में व्यापक पैमाने पर मतदान किया था जिसके चलते अपने गृह जिले इटावा से पहली बार प्रो. रामशंकर कठेरिया को जीत हासिल हुई। हालांकि इस जीत में समाजवादी परिवार में चल रही अनबन के बीच शिवपाल सिंह यादव की टकराहट भी एक बड़ा फायदेमंद मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए माना गया लेकिन नेता जी मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद शिवपाल सिंह ने अपने भतीजे अखिलेश यादव को नेताजी की तरह ही अपना नेता मान लिया है और उसके बाद शिवपाल सिंह यादव व्यापक पैमाने पर समाजवादी पार्टी के पक्ष में मजबूती से खड़े हो गए।
साल 2024 में शिवपाल के सपा के साथ मजबूती से खड़े होने से भाजपा उस हिसाब से फायदा नहीं ले पाई जिस तरह से उसको 2019 में फायदा मिला। 2019 में इटावा संसदीय सीट पर 58.52 फीसदी हुआ था जब कि 2024 में 56.39 फीसदी मतदान हुआ। 2019 के मुकाबले 02.13 फीसदी कम मतदान हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रो. रामशंकर कठेरिया मतदान के बाद अपनी जीत का दावा करते हुए बताते है कि केंद्र की मोदी और योगी सरकार की नीतियों के चलते भाजपा के पक्ष में खासी तादात में मतदान हुआ है नतीजा 4 जून को भाजपा के पक्ष में ही आयेगा।
इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार जितेंद्र दोहरे भी कुछ ऐसा ही बताते हैं। उनका कहना है कि संविधान को खत्म करने की वकालत करने वाली भाजपा को 4 जून को नतीजे के तौर पर हार का सामना करना पड़ेगा इसमें कोई दो राय नहीं है।वैसे तो बसपा ने पूर्व सांसद श्रीमती सारिका सिंह बघेल को भी इटावा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन चुनावी प्रचार से लेकर मतदान तक उनकी भूमिका कहीं पर भी प्रत्यक्ष रूप में नजर नहीं आई है इसलिए अगर उनको सम्मानजनक मत मिलते हैं तो बहुत बड़ी बात मानी जाएगी।
पीओके भारत का हिस्सा है, हम इसे लेकर रहेंगे: अमित शाह
सेराम्पोर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में विरोध प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए कहा कि ‘पीओके भारत का हिस्सा है और हम इसे लेकर रहेंगे।’
सेराम्पोर में एक रैली को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद एक समय अशांत रहे कश्मीर में शांति लौट आई है, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर अब विरोध प्रदर्शनों और आजादी के नारों से गूंज रहा है।
उन्होंने कहा, ‘सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद कश्मीर में शांति लौट आई है, लेकिन अब हम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में विरोध प्रदर्शन देख रहे हैं। पहले यहां आजादी के नारे सुनाई देते थे, अब वही नारे पीओके में सुनाई देते हैं। पहले यहां पत्थर फेंके जाते थे, अब पीओके में पथराव हो रहा है।”
पीओके पर कब्जे की मांग का समर्थन नहीं करने के लिए कांग्रेस नेताओं पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा, ‘मणिशंकर अय्यर जैसे कांग्रेस नेता कहते हैं कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि उनके पास परमाणु बम है। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि वह भारत का हिस्सा है और हम उसे लेंगे।”
शाह ने कहा कि वर्तमान लोकसभा चुनाव इंडियन नेशनल इंक्लूजिव डेमोक्रेटिक अलायंस (इंडी) गठबंधन के भ्रष्ट नेताओं और ईमानदार राजनेता नरेन्द्र मोदी के बीच चयन करने का चुनाव है। मोदी के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहने के बावजूद कभी भी उनके खिलाफ एक पैसे का भी आरोप नहीं लगा।’
उन्होंने कहा, ‘बंगाल को तय करना है कि वह घुसपैठिये चाहता है या शरणार्थियों के लिए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए)। बंगाल को तय करना है कि वह जिहाद के लिए वोट करना चाहता है या विकास के लिए वोट करना चाहता है।’
शाह ने सीएए का विरोध करने और अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ‘घुसपैठियों के समर्थन में रैलियां निकालने’ के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना की।