शादी के चलते नर्स को नौकरी से निकालना पड़ा महंगा, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया सख्त फैसला

नई दिल्ली
शादी के आधार पर एक नर्स को नौकरी से बर्खास्त किए जाने के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि शादी के आधार पर एक महिला की नौकरी खत्म करना लिंग भेदभाव का बड़ा मामला है और लैंगिक पूर्वाग्रह पर आधारित कोई भी कानून संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है। इसके बाद कोर्ट ने महिला को बकाया राशि के रूप में 60 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है। सैन्य नर्स को शादी के बाद नौकरी से हटा दिया गया था।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सेलिना जॉन के अनुरोध पर आदेश पारित किया, जिन्हें 1988 में उनकी शादी के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उस समय, वह लेफ्टिनेंट के पद पर थीं। उन्होंने 2012 में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण से संपर्क किया था, जिसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और आदेश दिया कि उन्हें बहाल किया जाए। हालांकि, 2019 में केंद्र ने आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

14 फरवरी के आदेश में बेंच ने कहा कि न्यायाधिकरण के फैसले में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। अदालत ने कहा कि 1977 में पेश किया गया एक नियम, जो शादी के आधार पर सैन्य नर्सिंग सेवा से बर्खास्तगी की अनुमति देता था, 1995 में वापस ले लिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि ऐसा नियम स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला की शादी हो जाने के कारण रोजगार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक बड़ा मामला है। ऐसे पितृसत्तात्मक नियम को स्वीकार करना मानवीय गरिमा, गैर-भेदभाव के अधिकार और निष्पक्ष व्यवहार को कमजोर करता है। कानून और नियम आधारित लिंग आधारित पूर्वाग्रह संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है। महिला कर्मचारियों की शादी और उनकी घरेलू भागीदारी को पात्रता से वंचित करने का आधार बनाने वाले नियम असंवैधानिक होंगे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button