पाकिस्‍तान मुशर्रफ की एक गलती की सजा भुगत रहा, BLA के आगे सेना भी फेल, जानें 3 वजहें

इस्लामाबाद
 बलूचिस्तान जल रहा है और पाकिस्तान के लिए अब नियंत्रण बनाना काफी मुश्किल हो गया है। बलूचिस्तान के पाकिस्तान से टूटकर एक अलग मुल्क बनना अब तय होता जा रहा है। सिर्फ वक्त की बात है और ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान की सरकारों ने सालों से बलूचों के साथ जो किया है और अभी भी बलूचों के साथ जो किया जा रहा है, उसने बलूचिस्तान के टूटने का रास्ता बना दिया है। बलूच विद्रोहियों से कैसे निपटा जाए, पाकिस्तान में इसपर बहस की जा रही है। कई लोग सरकार से कठोर बनने के लिए कह रहे हैं तो कुछ लोग बलूचों से बात करने की वकालत कर रहे हैं। डॉन में छपी एक एनालिसिसि रिपोर्ट में पत्रकार मुहम्मद आमिर राणा ने कुछ वजहों का जिक्र किया है। उन्होंने जो कुछ लिखा है, उसके आधार पर विश्लेषण करने से यही पता लगता है कि बलूचिस्तान का आज नहीं तो कल, टूटना तय है।

उन्होंने लिखा है कि आतंकवाद विरोधी (COIN) अभियानों के लिए ग्लोबल प्रैक्टिस के मुताबिक आतंकवाद के खतरों से निपटने के लिए सबसे पहले उसे स्वीकार किया जाना चाहिए। मुहम्मद आमिर राणा ने लिखा है कि "पाकिस्तान के तथाकथित बुद्धिजीवी अपने रिसर्च से सरकार को गलत तथ्य बताते हैं, सरकारें गलत तथ्य जानना चाहती है, और पाकिस्तान की मानसिकता ही यही रही है कि विद्रोह को हराने का एकमात्र रास्ता उसे कुचलना है। विद्रोह को कुचलना ही एकमात्र जीत की कुंजी है।"

बहुत भयानक गलती कर रहा पाकिस्तान?
मुहम्मद आमिर राणा ने कहा है कि RAND कॉपरेशन ने COIN थ्योरी के जरिए दूसरे विश्वयुद्ध के हाद से 2010 तक 71 विद्रोहों को लेकर रिसर्च किया गया है, जिसमें किसी विद्रोह को कुचलकर जीत हासिल करने की थ्योरी को खारिज कर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि हर विद्रोह अपने आप में अलग होता है और 24 में से 17 विद्रोह के खिलाफ कठोर नीति फेल हुई है। जबकि ज्यादातर सरकारें विद्रोह के खिलाफ कठोर रणनीति अपनाने पर ही जोर देती हैं। 286 पन्नों के COIN रिपोर्ट में बताया गया है कि किसी विद्रोह को आप कुचलकर नहीं जीत सकते हैं।

डॉन के मुताबिक पाकिस्तान में बलूच विद्रोह का सबसे ताजा दौर साल 2003 में शुरू हुआ जब पाकिस्तानी सेना के एक सीनियर अधिकारी ने बलूचिस्तान में एक बलूच महिला के साथ क्रूर बलात्कार किया। इसके बाद से बलूचों का विद्रोह आज तक खत्म करने में सरकार नाकाम रही है। उस दौरान बलूच नेता नवाब अकबर बुगती और तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के बीच गतिरोध तब और बढ़ गया, जब 2005 में कोहलू के पास मुशर्रफ पर रॉकेट से हमला किया गया। 26 अगस्त 2006 को कोहलू के पास एक गुफा में बुगती की पाकिस्तानी सेना ने उस वक्त हत्या कर दी, जब राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ ने ही उन्हें मिलने के लिए इस्लामाबाद बुलाया था और वो उनसे मिलने के लिए बाहर निकले थे। वह सुई से इस्लामाबाद के लिए रवाना होने वाले थे, तभी उनकी हत्या कर दी गई और उसके बाद से बलूचिस्तान का उजाड़ और विशाल इलाका नर्क में तब्दील हो गया है। ये साल 2000 के बाद बलूच विद्रोहियों के साथ किया गया सबसे बड़ा धोखा था।

बलूच विद्रोहियों से निपटने में क्यों नाकाम रहा पाकिस्तान?
मुहम्मद आमिर राणा ने कहा है कि लेकिन पाकिस्तान में सामूहिक दंड देने पर यकीन किया जाता है, बंदूक की गोली से इंसाफ किया जाता है, महिलाओं से जबरदस्ती की जाती है, दमन को बढ़ावा दिया जाता है और भ्रष्टाचार सबसे आगे रहता है। जबकि पाकिस्तान में विद्रोहियों के पास बाहरी समर्थन होता है, जिसकी वजह से हर अभियान फेल होता है। बलूचिस्तान अभियान भी फेल हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान ने आतंकवाद विरोधी अभियान के बाद विकास और शासन सुधारों को प्राथमिकता दी होती तो बलूचिस्तान में हालात अलग हो सकते थे। रिसर्च में पाया गया है कि विद्रोह को शांत करने के 36 मामले इसलिए फेल हुए क्योंकि सैन्य सफलता के बाद सरकार की वैधता स्थापित नहीं की गई और शिकायतों का समाधान नहीं किया गया। इसके अलावा लोकतंत्र को कुचल दिया गया और लोकतांत्रिक शासन नहीं अपनाया गया। और पाकिस्तान भी यही कर रहा है।

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