मुजफ्फरनगर में रेलवे स्टेशन के सामने स्थित मस्जिद और चार दुकानों को जांच के बाद शत्रु संपत्ति घोषित हुई
मुजफ्फरनगर
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रेलवे स्टेशन के सामने स्थित मस्जिद और चार दुकानों को जांच के बाद शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया है। यह संपत्ति पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली के परिवार की बताई जा रही है, और इसके कब्जे को लेकर विवाद पैदा हो गया है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 10 जून 2024 को तब सामने आया जब राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन के संयोजक संजय अरोड़ा ने तत्कालीन जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगाली को शिकायत दी। शिकायत में अरोड़ा ने आरोप लगाया कि यह संपत्ति अवैध तरीके से कब्जा कर मस्जिद और दुकानों का निर्माण किया गया है। उनका कहना था कि यह संपत्ति पाकिस्तान के लियाकत अली के परिवार की है और इस पर अवैध कब्जा किया गया है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि यह संपत्ति 1930 में वक्फ बोर्ड के नाम पर दर्ज की गई थी। उनके मुताबिक, इस संपत्ति पर बनाई गई मस्जिद और दुकानों का किराया वक्फ बोर्ड के मुतवल्ली को जमा किया जा रहा है। इसके अलावा, मुस्लिम पक्ष ने 10 नवंबर 1937 का एक पत्र भी जांच टीम को पेश किया, जिसमें इस संपत्ति को वक्फ की संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया था।
जांच और शत्रु संपत्ति का फैसला
संजय अरोड़ा की शिकायत के बाद तत्कालीन जिला अधिकारी की ओर से इस मामले की जांच कराई गई। एडीएम राजस्व गजेंद्र कुमार, एमडीए सचिव, सिटी मजिस्ट्रेट, एसडीएम सदर, सीओ सिटी और नगर पालिका ईओ की एक टीम ने इस संपत्ति की जांच की। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट शत्रु संपत्ति कार्यालय, दिल्ली को भेजी, जिसके बाद भारत सरकार के शत्रु संपत्ति अभिकरण ने एक टीम भेजकर मामले की जांच की। इसके बाद दोनों पक्षों की सुनवाई की गई, और जांच के बाद शत्रु संपत्ति अभिकरण ने इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। अब अधिकारियों का कहना है कि इस संपत्ति के कब्जेदारों को नोटिस भेजा जाएगा, और अगर नोटिस के बावजूद संपत्ति खाली नहीं की जाती, तो कानूनी कार्रवाई के तहत इसे खाली कराया जाएगा।
संपत्ति के बारे में जानकारी
सिटी मजिस्ट्रेट विकास कश्यप ने बताया कि यह संपत्ति खसरा नंबर 930 के तहत 8 बिस्वा जमीन पर बनी हुई है, जिसमें एक मस्जिद और चार दुकानें हैं।
दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया
मुस्लिम पक्ष के लोगों ने दावा किया कि यह संपत्ति वक्फ बोर्ड की है और इसे रुस्तम अली खान ने वक्फ के नाम पर छोड़ा था। इस मामले में दुकानें चलाने वाले मोहम्मद अतहर ने कहा कि यह संपत्ति शत्रु संपत्ति नहीं है, बल्कि यह रुस्तम अली खान की थी, जिन्होंने इसे वक्फ के नाम कर दिया था। उन्होंने सरकार से यह भी आग्रह किया कि इस मामले में सही और निष्पक्ष निर्णय लिया जाए। वहीं, हिंदू पक्ष के शिकायतकर्ता संजय अरोड़ा ने इसे "डबल स्वाभिमान का दिन" बताया। उनका कहना था कि यह संपत्ति 1918 से लियाकत अली खान के परिवार की थी और सरकार से उनकी मांग पूरी हो गई है कि यह शत्रु संपत्ति घोषित की जाए।
आगे की प्रक्रिया
अब इस संपत्ति के कब्जेदारों को शत्रु संपत्ति कार्यालय से नोटिस भेजा जाएगा। अगर नोटिस के बावजूद संपत्ति खाली नहीं की जाती, तो फिर कानूनी कार्रवाई के तहत इसे खाली कराया जाएगा।
शत्रु संपत्ति क्या होती है?
भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, पाकिस्तान जाने वाले लोगों की छोड़ी हुई संपत्तियों को शत्रु संपत्ति कहा जाता है। यह संपत्तियां भारत सरकार के नियंत्रण में होती हैं, और इनके बारे में शत्रु संपत्ति अभिकरण द्वारा निर्णय लिया जाता है। इस फैसले के बाद अब इस संपत्ति को लेकर विवाद और कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया जारी रहेगी।