अयोध्या स्थित अपने मंदिर में विराजमान होने के बाद रामलला की यह पहली होली , खेलेंगे कचनार गुलाल से होली

लखनऊ
अयोध्या स्थित अपने मंदिर में विराजमान होने के बाद रामलला की यह पहली होली है. ऐसे में इनके लिए खास गुलाल तैयार किया गया है. यह गुलाल कचनार के फूल से NBRI के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. गुलाल बनाने के लिए कचनार के फूल का ही इसलिए इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि मान्यता है कि त्रेता युग में अयोध्या के राजध्वज का चिह्न के रूप में कचनार का फूल लगा रहता था. इसलिए यह सीधे तौर पर भगवान राम से जुड़ा हुआ है. वनस्पति और पौधों पर रिसर्च करने में कई कीर्तिमान बना चुके NBRI के वैज्ञानिकों ने ये खास कचनार गुलाल तैयार किया है. रामलला को होली पर अर्पित की जाने वाली इस गुलाल का पहली बार प्रयोग होगा.  

कचनार की फूल गुलाल को किया है तैयार
NBRI डायरेक्टर अजीत कुमार शासनी ने बताया कि रामलला को लगाई जाने वाली गुलाल कचनार के फूलों में मक्के के स्टार्च (maze starch) को मिला कर तैयार किया गया है. बालक राम की मोहिनी मूरत इस खास गुलाल से खिल उठेगी. NBRI के निदेशक ने ये गुलाल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया है.

पहली बार बनाया गया है कचनार गुलाल
दरअसल, इस बार भव्य मंदिर में बालक राम की पहली होली है. यूं भी रोज लाखों श्रद्धालु अपने आराध्य की भोली और मनमोहक मूरत देख कर निहाल हो रहे हैं. इस गुलाल को रामलला को समर्पित करने का आईडिया खुद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का है. वैसी NBRI हर्बल गुलाल पर काम पहले भी कर चुका है, पर कचनार का गुलाल पहली बार बनाया गया है.

कचनार गुलाल से नहीं होगा त्वचा पर कोई असर
अजीत कुमार शासनी ने बताया कि इस गुलाल की खास बात ये है कि ये एंटी-बैक्टिरियल, एंटी-फंगल और एंटी एलर्जिक है. इसके पीछे ये भाव भी है कि रामलला छोटे बालक हैं. ऐसे में वो सिर्फ ऐसे गुलाल से ही होली खेल सकते हैं, जिससे उनकी कोमल त्वचा को नुकसान न पहुंचे.

अयोध्या के राजकीय ध्वज पर था कचनार के फूल का चिह्न
अजीत कुमार शासनी ने बताया कि त्रेतायुग में अयोध्या के राजकीय ध्वज पर अंकित रहा कचनार का फूल भी इसके लिए प्रेरणा की वजह बना. वैज्ञानिकों ने पौराणिक आख्यानों को भी ध्यान में रखा. इसमें बताया गया है कि त्रेतायुग में अयोध्या का राजकीय वृक्ष कचनार का पेड़ था.

NBRI के वैज्ञानिकों ने तैयार की है गुलाल
कचनार फूल के रंग यानी गुलाबी रंग का ये गुलाल रामलला के श्याम वर्ण पर खिलेगा. वहीं कचनार में अपनी कोई विशेष सुगंध न होने की वजह से लेवेंडर का फ्रैग्रेंस इसमें डाला गया है. NBRI के वैज्ञानिकों की टीम ने इस पर अध्ययन, गुलाल को विकसित करने और  फ्रैग्रेंस लैब में काम किया है.

रामलला को लगाने के बाद आम लोगों के लिए भी होगा उपलब्ध
पहली बार रामलला को अर्पित करने के बाद इसको आगे लोगों के लिए भी तैयार किया जाएगा. आस्था और विज्ञान दोनों ही इस बार रामलला के भक्तों की होली को खास बनाएंगे.इसके अलावा गोरखनाथ मंदिर में चढ़ाए गए फूलों से एक अलग गुलाल चंदन की सुगंध में विकसित किया है.

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