शनि के कष्ट को समझें, आने वाला है सुनहरा समय

शनिदेव के बारे में लोगों की नकारात्मक धारणा एवं भ्रम का कारण है, उनका सच्चा न्याय। अशुभ कर्मों के लिए दंड देते समय शनि न तो कभी देर करते हैं और न ही कोई पक्षपात, दंड देते वक्त दया तो उन्हें छू भी नहां पाती, यही वजह है कि शनि नाम से ही लोगों में भय समा जाता है। शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते ही अधिकांश व्यक्ति घबराने लगते हैं क्योंकि सबके मन में यह धारणा घर कर गयी है कि साढ़ेसाती का प्रभाव हमेशा अशुभ ही होता है। किसी को व्यापार में घाटा हो गया या उसके साथ कोई अनहोनी हो गई, तो सारा दोष शनिदेव के ऊपर ही आने लगता है। शनि “जज“ की भांति इन्सान के कर्मों और कुकर्मों का फैसला करता है।

मनुष्य को पाप और पुण्य के चक्कर में डालकर उसे उसी प्रकार निखारता है जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी को निखारते हुए उसे एक सुन्दर बर्तन का रूप दे देता है। साढ़ेसाती चल रही हो और अशुभ शनि के कारण घोर कष्ट, पीड़ा हो रही हो, तो यह समझना चाहिए कि शनि चिकित्सक की भांति आपका इलाज कर पूर्व जन्म के अशुभ कर्मों का फल देकर उन्हें शान्त कर रहा है। शनि व्यक्ति को कष्ट देकर मेहनती, ईमानदार और परिश्रम करने वाला बनाता है। मनुष्य को दुर्भाग्य तथा संकटों के चक्कर में डालकर अंत में उसे तपाकर शुद्ध तथा सात्विक बना देता है। अनुचित कार्य करने वाला व्यक्ति यह सोच कर निष्चिन्त हो जाता है कि उसे इस प्रकार का कार्य करते हुए किसी ने नहीं देखा, इसलिए वह बचा हुआ है, किन्तु कर्मफल प्रदाता शनि की दृष्टि से कुछ भी नहीं छिपता, ऐसे व्यक्तियों को शनि अपनी दशा अथवा साढ़ेसाती में कष्ट देकर सुधारता है।

शनि को ज्योतिष में क्रूर तथा पापी ग्रह माना गया है, परन्तु इसका अन्तिम परिणाम सुखद होता है, सत्कर्मी व्यक्ति शनि की कृपा का पात्र बनता है। शनि व्यक्ति को ईश्वर भक्ति की ओर मोड़ने हेतु कष्ट एवं पीड़ा पहुंचाता है। घोर संकट एवं कष्ट आते ही व्यक्ति ईश्वर की शरण में आ जाता है। शनि भक्ति को जगाता है, शनि से भयभीत लोग ईश्वर शरण में जाते हैं, दान, पुण्य, धर्म करते हैं। शनिदेव को भगवान शिवजी द्वारा मृत्युलोक के न्यायाधीश का पद दिया गया है। अतः यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे हों तो शनि उसे शुभ फल प्रदान करता है। यदि कर्म बुरे हों तो क्षमा नहीं करता बल्कि दंड देता है। ठीक वैसे ही, जैसे एक न्यायाधीश करता है। जब शनि अशुभ फल देने लगता है तो लोग जाने-अन्जाने में किए गए अपने कर्मों को सुधारकर पूजा-पाठ, जप-तप द्वारा अशुभता को कम करने का प्रयास करते हैं, यही कारण है कि नवग्रहों में शनि की सबसे अधिक पूजा-अर्चना की जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button