भाजपा की नजर किस ओर, मिशन 400 प्लस और आधे से ज्यादा वोट का टारगेट

अयोध्या 
अयोध्या में रामलला विराजमान हो गए हैं। ऐतिहासिक समारोह में 7000 मेहमानों की मौजूदगी में पीएम नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान के तौर पर बैठे और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की। पूरे देश में इस आयोजन को लेकर उत्साह दिखा और लोगों ने दिवाली जैसा सेलिब्रेशन भी किया। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि दो से तीन महीने बाद ही होने जा रहे लोकसभा चुनाव में इस राम लहर का कितना असर दिखेगा। भाजपा ने पिछले दिनों अपनी मीटिंगों में 400 प्लस सीटें जीतने और 50 पर्सेंट वोट हासिल करने का लक्ष्य तय किया था। इसके बाद से ही चुनावी विश्लेषक इस मंथन में जुटे हैं कि भाजपा कहां से यह लक्ष्य हासिल कर सकेगी।

इन सवालों का कुछ हद तक जवाब हाल ही में आए ETG के ओपिनियन पोल से भी मिलता है। इस पोल में अनुमान जताया गया है कि भाजपा भले ही गठबंधन से बाहर हो गई है, लेकिन बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, ओडिशा जैसे राज्यों में वह 2019 से भी अधिक सीट पा सकती है। बिहार और झारखंड जैसे पूर्वी राज्यों समेत भाजपा ने हिंदी पट्टी की 225 सीटों में से 178 पर जीत हासिल की थी। यूपी में उसे 80 में से 62 सीटें मिली थीं। यहां उसका मुकाबला सपा, रालोद, बसपा के गठजोड़ से हुआ था, जो अब कमजोर ही हुआ है। बसपा साथ आने को तैयार नहीं है और कांग्रेस से भी बात नहीं बन सकी है। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद बुरी तरह हारे थे। 

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ऐसे में उनका गठजोड़ अब कितना ताकतवर है, इस पर संदेह है। फिर यूपी में अब रामलहर का दौर है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा को पहले से कहीं ज्यादा बढ़त मिल सकती है और हाल 2014 जैसा ही हो सकता है। ETG ओपिनियन पोल में अनुमान जताया गया है कि भाजपा को यहां 8 से 12 सीटें अधिक मिल सकती हैं। यह सर्वे भी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले आया था। ऐसे में अब बने माहौल के बीच इस पर यकीन करने की वजहें हो सकती हैं। अब बिहार की बात करें तो भाजपा ने 2019 में जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 40 में से 17 सीटों ही कैंडिडेट उतारे थे। इन सभी को उसने जीत लिया था। 

बिहार, महाराष्ट्र में क्यों साथियों से अलग होकर भी खुश होगी भाजपा?
अब जेडीयू बाहर है और एलजेपी जैसे छोटे दलों के साथ ही भाजपा चुनाव में उतरने जा रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा 30 से ज्यादा सीटों पर उतरने को तैयार है और माना जा रहा है कि 2019 के मुकाबले वह 5 से 7 सीटें अधिक जीत सकती है। वहीं महाराष्ट्र में भी वह अब उद्धव ठाकरे जितनी सीटें एकनाथ शिंदे गुट को नहीं देने जा रही। साफ है कि वह अधिक सीटों पर लड़ेगी और बंटी हुई उद्धव सेना, एनसीपी के मुकाबले वह मजबूत स्थिति में हो सकती है। यही नहीं पंजाब में भी उसकी तैयारी अकेले ही उतरने की है। भले ही वह यहां अधिक सीटें न जीत पाए, लेकिन वोट प्रतिशत में जरूर इजाफा होगा।

500 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है भाजपा
ओडिशा को लेकर भाजपा के रणनीतिकारों का कहना है कि हम यह संदेश देना चाहते हैं कि भले ही वोटर स्थानीय स्तर पर नवीन पटनायक को चुन लें, लेकिन दिल्ली में मोदी के नाम पर वोट दें। ओडिशा में भाजपा ने 8 सीटें जीती थीं और अब वह इस स्कोर को बढ़ाना चाहेगी। भाजपा ने 2019 में 435 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इस बार यह संख्या 475 से 500 तक पहुंच सकती है। इससे भाजपा के वोट शेयर में सीधे तौर पर इजाफा हो सकता है। ऐसा हुआ तो यह ऐतिहासिक होगा।

आज तक किसी को नहीं मिले 50 पर्सेंट वोट, 1984 में क्या हुआ था
बता दें कि भारत के चुनावी इतिहास में किसी ने भी 50 फीसदी से ज्यादा सीटें नहीं पाई हैं। 1984 में कांग्रेस ने 403 सीटें जीती थीं, लेकिन उसका वोट शेयर 48 फीसदी ही था। इसलिए भाजपा यदि इसके करीब भी पहुंचती है तो यह बड़ी सफलता होगी और यदि उसने इस तरह का टारगेट तय किया है तो साहसी फैसला है।
 

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